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Feb 17, 2012

दादी की झुर्रियां !!



(A poem dedicated to my Dadi whom we called "Eeja"means mother in Kumaoni language" She left us in 1998 in a age of 80 years. We all love you Eeja and you will always remain in our hearts.)








आज फिर बहुत याद आ रही है तेरी दादी. 
जब तू थी तो घर, घर जैसा लगता था,
टूटा फूटा फर्श भी संगेमरमर जैसा लगता था.
एक रजाई में हम सब बच्चे घुस जाते थे,
फिर भी बिछौना कभी कम न पड़ता था.
आज जब डबलबेड के गुदगुदे बिस्तर सजाते हैं तो,  फिर तेरी बहुत याद आती है दादी !!

अल सुबह  उठ के तेरा खटर पटर करना,
चूल्हे में आग फूंकना और नहाने का पानी  गरम करना.
एक धोती में लिपट के गोसल से बाहर आना,
चाय का गिलास हाथ ले मदिर की  घंटी टनटनाना.
ठाकुर जी को ताज़े फूल और जल से उन्हें नहलाना,
तेरे मंत्र और श्लोक, अक्षत चन्दन और आरती की जोत
और हमारा नीद में ही तुझ पे कुडकुडाना.

आज जब अलार्म से भी नीद नहीं खुलती है तो, फिर तेरी बहुत याद आती है दादी !!

तू कहती थी ब्रह्म मुहूर्त मैं जो उठ जाए,
बुद्धि, रिद्धि और सिद्धि सहित, सरस्वती के दर्शन पाए.
हम सब पागल होड़ लगाते, तेरे उठने की  आहट पर,
हम भी उठ के, बिस्तर छोड़ के, सरस्वती को हाथ जोड़ते
आधी नीद और आधे होश में, गर्दन तक के रजाई ओढ़ते.
अपनी अपनी खोल किताबें, कोशिश करके खोलें आंखें,
कितना पढ़ते थे और कितना सोते थे, ये तो अब याद नहीं पर

आज जब वही पाठ बच्चों को पढ़ाते हैं तो,  फिर तेरी बहुत याद आती है दादी !!

तेरी अदरक की चाय और बड़े कडाहे में खौलता हुआ गाढ़ा दूध,
दोनों का ही स्वाद आज तक जुबान से नहीं गया.
बड़े कमरे के बीच वाले खम्बे में बंधी हुई तेरी मथनी
और दोपहर में दही के डोलों को मथ के तेरा मक्खन बनाना,
वो घर्रर्र घर्रर्र  की आवाज सुन के हमारा डर
और मां का ये कहकर "बुड्ढा बाबा आया है बच्चे पकड़ने वाला"
हम को दूर भगाना.
तू सब को दही और मक्खन बाँटती थी दूर पड़ोस तक भी,
जो ना आ सके उसे घर जा के दे आती थी.
उन्हें भी -  जिनके पास था पर बाँटना ना आता था और
उन्हें भी -  जिनके पास बांटना छोड़ खाने को ही ना था.
कितने ही बच्चों का  सुबह अपनी गिलसिया ले के दूध पीने आना,
और तेरी गोद में बैठ के अपना हक जताना.
हमें बहुत अखरता था

आज जब माँ अन्नपूर्णा की आरती करते हैं तो,  फिर तेरी बहुत याद आती है दादी !!

तेरा रसोई में एक सूती धोती में खाना बनाना,
चूल्हे के इर्द गिर्द कोयले की  लक्ष्मण रेखा बनाकर
चूल्हे की आग में दाल और कोयलों में  रोटी सेकना.
रसोई के सामने के बाड़े से ताज़ी सब्जी तोडना,
और बस ऐसे ही कुछ भी मसाले डाल के पकाना.
बचे खुचे दही की वो खट्टी कढी और अपने घट के कुटे गुलाबी चावल,
इस खुशबू से पूरा घर महकता था.
छोटे पेड़ की पकी हुई मोसम्बी (जो बाबूजी की याद है)
के चार बराबर टुकड़े करने का चैलेन्ज,
सिल बट्टे की घस घस पर धनिये मिर्ची का नमक.
सामने के खेत से झक सफ़ेद  मूली उखाड़ना
और पानी से धो कर मोसम्बी के साथ सलाद बनाना,
इतनी मेहनत के बाद तेरे हाथों से परसी हुए थाली
और धारे ( पानी का छोटा स्रोत) का ठंडा पानी.
ना ही वो चूल्हा है और ना ही वो तृप्ति

आज जब "राजधानी" में जा के राजस्थानी थाली खाते हैं,  तो फिर तेरी बहुत याद आती है दादी !!

रात में सोने से पहले जब तू सगड़ के कोयलों को खुद्बुदाती,
और बची खुची चिनगारियो से हाथ गरम करती.
हम तेरे चारो ओर गोला बना के बैठ जाते
नेपाल के लामा से खरीदी हुई पंखी में लिपटे
गरम दूघ और गुड के मीठे घूंटो के बीच,
कई बार सुनी हुए कहानियाँ फिर सुनाने की जिद करते.
कैसे तेरी शादी ८ साल में हो गयी, और तू फ्रौक पहन के ससुराल आ गयी
कैसे रास्ते में अपने बड़े पापा को देख तूने डोली से छलांग लगा दी,
और कैसे  एक बार ससुराल में अपनी रिश्ते की सास को देख के,
अपनी फ्रौक का  घेर  सर पे चढ़ा के घूंघट बना लिया.
वाह रे बचपन ! ये तो भूल ही गयी की फ्रौक के नीचे कुछ ना पहना है.
कैसे तू शादी के बाद सबके ताने सुन के भी पढ़ती रही ,
दिन में खेत और घर के काम के बाद, रात को थक हार के
सबको खिला पिला के, सास के पैर दबा, उनके सोने के बाद 
दिए की  धीमी लौ में अपनी किताबों से प्यार करती रही.
तेरा  संघर्ष रंग लाया जब तूने मेट्रिक पास किया,
गाँव के एक मात्र स्कूल की टीचर बनने का निमंत्रण मिला.
तेरी परीक्षा सफल हुई और साथ ही दादाजी की भी, जो बिना किसी को बताये भी तेरे साथ थे.
किसी ने सर पे हाथ फेरा हो या ना हो पर तेरी इच्छाशक्ति की मन ही मन जरूर दाद दी होगी.

आज जीवन में सफलता के हर एक नए कदम पर!!!  तेरी बहुत याद आती है दादी !!

हम कई बार तुझसे पूछा करते थे की तेरे चहरे पे इतनी झुर्रिया क्यों?
तुझे बेसन का उबटन लगाने की मुफ्त सलाह देते तो कभी,
छुप के इंदौर वाली चाची का पोंड्स क्रीम का  डब्बा.
तू अपने पोपले मुह के अन्दर जोर से हंसती तो,
फुस्स से हवा बाहर निकल जाती, और हम मुहं दबा के हँसते.
तू हमारे सर पे हाथ फेर के कहती, "लाला ये झुर्रियां नहीं मेरी पढ़ाई है
हर झुर्री एक डिग्री है और चहरे की हर लाइन एक सरटीफीकेट,
इस पढाई ने मुझे सिखाया है इस घर को एक साथ जोड़ के रखना
तुम सब को सही रास्ता दिखाना और प्यार से रहना इसलिए
मुझे ये  झुर्रिया अच्छी लगती हैं."
हमें कुछ समझ आता कुछ  नहीं और हम कौतुहल से तेरी झुर्रियों को छू के देखते
जैसे अचानक से वो कुछ इम्पोरटेंट  हो गयी हों.

आज सुबह अचानक जब अपने माथे पे उभर आई एक "फाइन लाइन" पर  नजर पड़ी

तो एक बार फिर तेरी बहुत बहुत याद आयी दादी !!

( May your soul rest in peace and guide us for doing right things throughout our life. Lots of Love and Love and Love )

Kaivi ..

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9 comments:

  1. Fantabulous ya....i almost cried....u reminded me my bachpan......keep writing ya....u r really good in this....:):):)

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    1. Thank you Renu - For sparing time to read my blog and your words of appreciation. Thanks a lot.

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  2. Awesome..!! You know what, i've never seen my granny, but i guess this is how i wanna picture her memories..! This is extremely tremendous writing..! I was feeling so involved all this time..!

    You are simply the best Kavita..!

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    1. Thank you Ankush.

      No matter where we belong to the melody of love remains same. and for every child this is kind of shelter where you can come and feel secure. All granny's are equally special for their grand children.

      Thanks for your comment. It always encourages me for better.

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  5. @ anonymous: Thanks for visiting my blog and leaving a comment. you can find my e mail subscription at the end of the page..

    Thank you once again..

    Kaivi

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